...

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कम तुम भी नही
वो पर्वतों का डेरा है,जिस पर आग्निलिप्त मार्ग बना हुआ है
जो पार किया,वो अग्नि मुक्त,जो असफल,वो फसा हुआ है
कही मशालो जैसी प्रेरणा,डर के कृत्रिम बादल जमे है कहीं
चिट्ठी भी जब चट्टान चढ़ले,प्रिय श्रोता कम तुम भी नही

दम दम पर ताने का ढेर,एक कदम से दो कदम का भेद
तुम कोशिश कर गिर गए नहीं, तुम्हारे बढ़ने से है उन्हे खेद
माया को...