...

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मैं क्यो लिखता हूं ....

मकसद नहीं है .. भीड़ जुटाना
नाही शोर मचाना
लिख लेता हूं कुछ उभरता सा
है मन में
कुछ जज्बात है
जो चाहता हूं कह जाना
मकसद नहीं है ....

ए शब्द नटखट हैं, शोख भी
चंचल से है, कभी ख़ामोश भी
ला देंगे आंखों में आसूं कभी
कभी पड़ जायेगा खिलखिलाना
मकसद नहीं है ....

छू लेंगे कभी तुम्हें
ए इतने अपने पन से
भीग जायेगा मन
इनकी सिरहन से
याद आ जायेगा,
गुजरा हुआ जमाना
मकसद नहीं है ....

पन्नो से निकलकर
जब छु ले आपको
कह लें आपसे
संदेश मेरा
अलविदा कर देना
उन्हें मुस्करा कर
क्योंकि नया संदेश लेकर
उन्हें फिर है आना
मकसद नहीं है ....

इस जहां में
हम मिले न मिले
ए शब्द हमें
मिलवाते रहेंगे
आपकी मुझसे कहेंगे
मेरे मन की आपको
सुनाते रहेंगे

शब्दों के इसी आशियाने में
अपनी बसर होगी
बांट लेंगे यूं सुख दुःख हम
जिंदगी एक खुबसूरत
सफर होगी
मकसद नहीं है ....

- स्वरचित ०७.१०.२०२०
© aum 'sai'