...

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गज़ल मेरे महबूब
चाहतों का कोई हिसाब नहीं
मेरे महबूब का जवाब नहीं

मेरे होंठो ज़रा संभल जाओ
उसका चेहरा है ये गुलाब नहीं

जो भी कुछ है ये सब हकीक़त है
मेरी आंखो में कोई ख़ाब नहीं

जिसको चाहो उसी के हो जाओ
इश्क़ में कोई इंतेखाब नहीं

उसको किस तरह मान लें ज़िन्दा
जिसके लहजे में इंकलाब नहीं

मेरे जज्बात भी मुक़फ़्फ़ल हैं
उसके दिल में कोई बाब नहीं
© Ahmed Shahbaz ‎احمد شہباز