लोग..
अपनी गलती को नादानी,
और दूसरों की गलती को गुनाह कहते हैं।
ज्ञान बांचते फिरते हैं सबको,
ख़ुद को न जाने भगवान कहते हैं।
सबकी बातेँ बदतमीजी लगती हैं,
और ख़ुद के शब्दों को सम्मान कहते हैं।
दूसरों को मुर्ख करार करके,
ख़ुद को हमेशा विद्वान कहते हैं।
बात बात पर सिर्फ भड़कना ही सीखा है,
फिर भी खुद को धैर्यवान कहते हैं।
खुद के मुँह मिया मिट्ठू बनने से फुर्सत नहीं, ...
और दूसरों की गलती को गुनाह कहते हैं।
ज्ञान बांचते फिरते हैं सबको,
ख़ुद को न जाने भगवान कहते हैं।
सबकी बातेँ बदतमीजी लगती हैं,
और ख़ुद के शब्दों को सम्मान कहते हैं।
दूसरों को मुर्ख करार करके,
ख़ुद को हमेशा विद्वान कहते हैं।
बात बात पर सिर्फ भड़कना ही सीखा है,
फिर भी खुद को धैर्यवान कहते हैं।
खुद के मुँह मिया मिट्ठू बनने से फुर्सत नहीं, ...