एक पन्ना मेरी डायरी का
सोचा ना था कभी एक ऐसा भी एहसास होगा दिल को,
क्या नियति का सृजन मुझे भी खींच लेगा ,
अपनी मोहक दुनिया में ,
अनजाने में कहूं या फिर इत्तेफाक कहूं इसे
जो मेरा मन भी मझधार में है कब क्यों कैसे महसूस हुआ कुछ अलग सा ?
मन में...
क्या नियति का सृजन मुझे भी खींच लेगा ,
अपनी मोहक दुनिया में ,
अनजाने में कहूं या फिर इत्तेफाक कहूं इसे
जो मेरा मन भी मझधार में है कब क्यों कैसे महसूस हुआ कुछ अलग सा ?
मन में...