...

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गुमसुम सा सफर
यूं हवाओ का खुद से छू के जाना, यूं विचारों का खुद में रह जाना।
बहुत सारे सपनों को खुद में समाहित करना, फिर उन काल्पनिक सपनो में खो जाना।
ऐसे पलों को महसूस करना, जैसे कि बहुत सदियों से पेड़ो पर फूलों का न आना।
अनजान से सफ़र में अकेले रह जाना, जैसे की बसंत ऋतु से ग्रीष्म ऋतु आना।
एक फूल का वर्तिका में ही रह जाना, इस सफ़र का सफर में गुमसुम हों जाना।
बहुत अनभिज्ञ कर देना जैसे खुद में समा जाना....🚶
:-Sonu@13
© फिर वहीं यादें 'अश्क'