...

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बेईमानी दिल की...
इस बेईमान दिल के सहारे अब और कब तक जिया जाए,
इससे तो अच्छा है कि दिमाग को एहमियत दिया जाए।

दिल और दिमाग के खेल में अब तक दिल जीतता आया है,
क्यों ना इस बार इस कीमती दिमाग को जिता दिया जाए।

देखो दिल को इतना संभालने के बाद भी मचल जाता है,
दिमाग रखता है दर्द से दूर हमें,तो इसका साथ दिया जाए।

दिल हमारी सुनता ही नहीं, हमें दुःख तकलीफ में धकेलता है,
करके तिरस्कार इसका,इसे भी दर्द का एहसास कराया जाए।

इस बेशरम,बेरहम, बेगैरत दिल के साथ अब और कैसे रहा जाए,
अच्छा है कि इससे हर रिश्ता, हर ताल्लुक तोड़ लिया जाए।

आकांक्षा मगन "सरस्वती"

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