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ग़ज़ल
अपनी हर एक चीज़ को अफ़ज़ल बताएगा
वो टाट की दरी को भी मख़मल बताएगा
दीवानगी जो मेरी कभी उस पे खुल गयी
मुम्किन है फिर वो भी मुझे पागल बताएगा
ज़ुल्फ़ें गुनाहगार थीं या चाँद की नज़र
बिजली गिरी किधर से ये आँचल बताएगा
तूने अगर छुपा भी लिया अपना हाले-दिल
हर दर्द तेरी आँख का काजल बताएगा
क्या फ़ैसला करूँ मैं अभी अपने बारे में
मैं जो भी दास्ताँ हूँ मेरा कल बताएगा
© All Rights Reserved
वो टाट की दरी को भी मख़मल बताएगा
दीवानगी जो मेरी कभी उस पे खुल गयी
मुम्किन है फिर वो भी मुझे पागल बताएगा
ज़ुल्फ़ें गुनाहगार थीं या चाँद की नज़र
बिजली गिरी किधर से ये आँचल बताएगा
तूने अगर छुपा भी लिया अपना हाले-दिल
हर दर्द तेरी आँख का काजल बताएगा
क्या फ़ैसला करूँ मैं अभी अपने बारे में
मैं जो भी दास्ताँ हूँ मेरा कल बताएगा
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