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एक दिन उस गोद में
बिताया एक दिन कुदरती गोद में, थी वह, गाँव मेरे मित्र के "जनगाँव" में। मित्र मल्लय्या ने कहा, तभी मुझसे। विनोबा के एक सच्चे वारिस हैं इस गाँव में।
कौन वह !! कभी बताया नहीं, पूछा मैंने। तो बोले वे, आज मिलेंगे हम उन से। डा. डी. नारायणरेड्डी हैं जो पहले साम्यवादी थे। रुख बदला, कर्मयोगी विनोबा के पास गये।
रह गये बहुत दिन आश्रम "पौनार" में, ध्यान दिया उस आश्रमवासी जीवन पर। लगे रहे प्रवक्ताओं के प्रवचनों के सार ग्रहण में। आये, विचार-मंथन पर्यंत, निज संकल्प पर।
अपनी सामाजिक भावना जो होती है, कहीं न कहीं उसे एक साकार रूप देना है। विचार यह उठा किन्हीं ? आश्रम छोड आये जनगाँव में। सफल किसान बन, लग गये काम-काज में।
साथ में किसी साथी को लेते थे, शुरू करते चिरकाल का सत्कार्य थे। देश विदेश के सहयोग से वे, देश में विशिष्ठ निर्माण चाहते।
जान गये आश्रम जीवन से वे। विकेन्द्रीकरण ही जीने का मूलाधार है। श्रम ही सदा मानवलोक के, जीवन का सुख साधन है।
बाहर के बूढे अंदर के जवान रेड्डीजी से जा मिले। निकले सब उनकी भावना रूप बाग बगीचे देखने। रास्ते में कुछ कृषक देख, कसक उठी मन में। बाद, पहुँचे, कुदरती गोद में बने बाग बगीचों में।
उलसते बाग बगीचे देख हलसित हुआ मन मेरा। फलते-फूलते वे पेड, और फसल देख पूछ उठा मन मेरा। भारत के सभी किसान अपने जीवन में ऐसे बन सकते क्या ? मित्र नारायण रेड्डी जी ने कहा सुविधा हो तो बन सकते ऐसा।
हृदय ग्राहिणी, अमराई, शरीफा, आँवला, जामुन, नींबू, नारंगी, संतरे, इमली, अनार, अमरूद, मकई, ज्वार, बाजरा, धनियाँ, सरसों, धान, सब कहने लगे आपके रेड्डी जी है, कुशल बागबान।
आपने जीवन में श्रम का मूल्य ठीक से आँका। 'आराम हराम है' को अपना मार्गीपदेशक माना। आध्यात्मिकता तथा भौतिकता का समन्वय किया है। जो भारतीय संस्कृति का मूल धर्म रहा है।
श्रमदान में, स्वावलंबन में, शांतिमार्ग में, जन-हित का मार्ग देख लिया आपने। गांधी, विनोबा एवं जवाहर के वारिस बने, जिस से देश के आदर्श नागरिक बने।
निज द्वार के सामने, चिरानंद प्रदायिनी, माता श्री अरविंदाश्रम का द्वार है। जो मूल मन्त्र है धन्य जीवन की, उसे पा गये हैं सो आप धन्य हैं।
समय हुआ अपना, रेल पकडने निकला मैं। विदा करने आये भाई रेड्डी जी स्टेशन पर। कहा मैंने - हृदयहारी आतिथ्य नहीं भूलूँगा मैं। जान गया पवित्र अंतस्तल जो याद होगा जीवन भर।
© Kushi2212