तुझमें और मुझमें फ़र्क है...
मैं काली दाग़दार रात हुं,
तुम बेदाग़ सफ़ेद सुबह हो।
मैं वो राह हुं जिसकी कोई मंज़िल नहीं,
तुम मंज़िलों के पहाड़ों की चौटी पर हो।
मैं वो बंजर ज़मीं हुं जो एक बूंद से भी महरूम हैं,
तुम तो...
तुम बेदाग़ सफ़ेद सुबह हो।
मैं वो राह हुं जिसकी कोई मंज़िल नहीं,
तुम मंज़िलों के पहाड़ों की चौटी पर हो।
मैं वो बंजर ज़मीं हुं जो एक बूंद से भी महरूम हैं,
तुम तो...