...

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मानव-जीवन का खोता अर्थ
आधुनिता के छलावे में,
व्यावहारिकता के दिखावे में,
मानवीयता खो-सी रही है....

प्रसन्नताओं के प्रसून, से परे,
निराशाओं के तिमिर में घिरे,
आज के अधिकांश मनुज,
आत्म-अवलोकन को भूल है रहे ।

क्षणिक नश्वरता के भंवर में,
स्थायित्व को जो खोज रहे,
वो इसकदर अधरझूल में है झूल रहे....

ईश्वरीय प्रकृति को समाहित कर,
मानवीयता को मन में धरें,
जगत-कल्याण के भाव लिए,
मन में जिजीविषा को भरें,
वहीं मनुज, जीवन को सार्थक करें ।।

© Mridula Rajpurohit ✍️
🗓️ 05 July, 2021
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