छायोओं कि भाष पर कविता
#छायाओंकीभामेरी नन्ही सी छाया है जो साथ मेरे आती जाती है,
पता नहीं मुझको कि कितनी काम हमारे वो आती है,
सिर से ले कर पाँव तलक; वो मुझ जैसी बन जाती है
मेरे बिस्तर पर मुझसे पहले कूद के वो चढ़ जाती है.
मजेदार बातें हैं उसकी, कद काठी में चलती उसकी,
बच्चों जैसी नहीं कि जिनकी ऊँचाई...
पता नहीं मुझको कि कितनी काम हमारे वो आती है,
सिर से ले कर पाँव तलक; वो मुझ जैसी बन जाती है
मेरे बिस्तर पर मुझसे पहले कूद के वो चढ़ जाती है.
मजेदार बातें हैं उसकी, कद काठी में चलती उसकी,
बच्चों जैसी नहीं कि जिनकी ऊँचाई...