...

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चलो खुद को समेटने की ज़िम्मेदारी लेते हैं
बिखरे हुए को देखकर कुछ समझदारी लेते हैं
चलो खुद को समेटने की ज़िम्मेदारी लेते हैं

कुछ अपने मन को समझा लेते हैं
कुछ उसके भावनाओं को दबा लेते हैं
कुछ मन की व्यथा और लाचारी लेते हैं
चलो खुद को समेटने की ज़िम्मेदारी लेते हैं

कुछ आंखों से भी छलका लेते हैं
कुछ होंठों को भी समझा लेते हैं
कोई किस्सा कोई कहानी पुरानी लेते हैं
चलो खुद को समेटने की ज़िम्मेदारी लेते हैं

समझने को दिमागी राय लेते हैं
बातें दिमाग की मन पर लगाए लेते हैं
संभलने की औषधि कोई गुणकारी लेते हैं
चलो खुद को समेटने की ज़िम्मेदारी लेते हैं

तन को रंगो से सजा लेते हैं
मन को उमंगों से सजा लेते हैं
कुछ दुनिया की दिखावटी दुनियादारी लेते हैं
चलो खुद को समेटने की ज़िम्मेदारी लेते हैं।

कुछ बातों में मुंह बंद कर लेते हैं
कुछ यादों में यादें मंद कर लेते हैं
भूलने की कोई झूठी बीमारी लेते हैं
चलो खुद को समेटने की ज़िम्मेदारी लेते हैं।


© प्रज्ञा💙राजपुतानी⚔1282✍️