...

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बताओ, उदास क्यों हो ?
फर्श पर दीवार से लगकर आधी रात
फूट फूट कर रोते हुए वो
रंगमंच से लेती हुई विदा
अपनी जिंदगी की आखरी दुआ करती है
तुम्हें नसीब हों बेशुमार मोहब्बतें
और दुनिया भर का इश्क
पर इन सबके दरमियां तुम लिखवाओ
उसके गुमनामी की शिकायत थाने में
भटको जाने कितने देहात शहर
बांधो मन्नत के धागे
करो व्रत उपवास
खोजो मंत्र - तंत्र
मिलो पीर-फकीर से
ढूंढो तुम उस साधारण से चेहरे को
हर उस चेहरे में जो तुमने चाहा
अपने चेहरे पर तड़पती लकीरें लिए
और इस तलाश में
पार कर जाओ एक उम्र
गहरी टीस के साथ कि
काश बैठता उसके पास
आखरी मुलाकात में
ये पूछने के लिए कि,
"बताओ, उदास क्यों हो?"

गिराओ एक आंसू
उसके ना होने के नाम
तुम भी किसी दिन
© शिवप्रसाद