...

8 views

दूसरा बचपन
बुढ़ापा रोता खुद को ढ़ोता बस मदद पुकारा करता है ।
बदहाली से बुरे दिनों में अब अकेले गुजारा करता है।
बचपन के तो हैं मां और बाप उसे हो क्यों किसी का डर।
लाड प्यार जो करते उसको बुढ़ापे के दोनों गए हैं मर।
बचपन के कुछ दांत हैं निकले बुढ़ापे के सारे गए निकल।
उसको मां का दूध और आंचल उसे कुछ भी खाना मुश्किल।
बचपन के तो मल और मूत्र धोकर भी सब होते हर्षित।
बुढ़ापे की असमर्थता को सब देते ताना करते भर्सित।
बुढापा फिर भी बचपन को ले गोदी में हो जाता प्रसन्न।
हर पल रखता ध्यान कहीं कभी वो हो ना जाए खिन्न।
यौवन चाहता बचपन को बुढ़ापे का करता अपमान।
ये दोनों चाहते यौवन को असमर्थता में है दोनों समान।
बचपन तुमने खोया है और बुढ़ापा तुममें सोया है।
हे यौवन तिरस्कृत बुढ़ापे में ही कभी भार तुम्हारा ढ़ोया है।
कभी भार तुम्हारा ढ़ोया है।।


© All Rights Reserved