...

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मन्ज़िल के लिए सब किया
#रहने-दिया
जो छूटा जहां उसको वही रहने दिया,
सोचा नहीं जो हुआ उसे होने दिया;
थम जाएं ऐसों से ख़ुद न मिलने दिया,
भागती-दौड़ती ज़िन्दगी को कभी
ब्रेक ना दिया ,
जो मिला शुकर किया ,जो ना मिला
उसका कभी सबर ना हुआ ,
हर साँस झोंक दी बस पाने में ,
कभी कुछ देने का उसे ,इल्म ना हुआ
बढ़ रहे थे कदम मुकाम की तरफ
हर छोटे रास्ते को उसने तज दिया ,
ये रहने-दिया का फासला ,हर इंसान ने
कुछ यूँ ही तय किया
क्या मोल पड़ेगा आख़िर में तेरा ,
कभी कुछ देर रूक कर तूने स्व मनन किया ??