मन की दुविधा
सब कुछ है फिर भी कुछ कम है
अपना कुछ लगता ही नहीं
रोशनी फैलीं जहां में सारे
मन में तम फिर इतना क्यों है।।
कुछ कम है और कुछ पूरा है
आज़ाद ख्याल अधुरा है
स्वतन्त्र भारत होने पर भी
बंदिशों के जाल ने क्यों घेरा है
मन में है तुफान भरा
पर तन से शान्त दिखाना है
अपना कुछ लगता ही नहीं
सब कुछ यहां बेगाना है
आज जो अपने ,कल बेगाने
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