ग़ज़ल.....
क्या खूब है तेरे लबों की लाली,
थोड़ा चुरा लूँ तो नाराज़ न होना…
इसी बहाने तुझे करीब रख लूंगा,
मेरे मेहबूब मगर नाराज़ न होना…
माना तेरा तलबगार हूँ दीवाना हूँ,
आँखों में बसा लूँ नाराज़ न होना..
न कर इश्क़ तुझ पर ज़ोर नहीं है,
जं देदूं गर दर तेरे नाराज़ न होना…
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थोड़ा चुरा लूँ तो नाराज़ न होना…
इसी बहाने तुझे करीब रख लूंगा,
मेरे मेहबूब मगर नाराज़ न होना…
माना तेरा तलबगार हूँ दीवाना हूँ,
आँखों में बसा लूँ नाराज़ न होना..
न कर इश्क़ तुझ पर ज़ोर नहीं है,
जं देदूं गर दर तेरे नाराज़ न होना…
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