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मेरी बांहों में कल जो इक रात कसमसाई थी
मेरी बांहों में कल जो इक रात कसमसाई थी
मेरी पलकों ने बताया तू ख़्वाबों में आई थी
धड़कने बांधीं मुश्किल से सांसों की डोर से
महक उठी हवा,तेरी खुशबू कमरे में आई थी
जैसे दरवाज़े से दस्तक देती तेरी चोर नज़र
अधखिली धूप की रंगत रुखसारों पे छाई थी
गुजरी मासूमियत भी तेरे यौवन के करीब से
कर रहीं निगाहें सजदा जो तुझसे टकराईं थीं
"अंदाज़-ए -मंज़र" से ये ग़ज़ल भींग जाएगी
गुलाबी दुपट्टे से जो मेरा नाम बांध आई थी
© manish (मंज़र)
मेरी पलकों ने बताया तू ख़्वाबों में आई थी
धड़कने बांधीं मुश्किल से सांसों की डोर से
महक उठी हवा,तेरी खुशबू कमरे में आई थी
जैसे दरवाज़े से दस्तक देती तेरी चोर नज़र
अधखिली धूप की रंगत रुखसारों पे छाई थी
गुजरी मासूमियत भी तेरे यौवन के करीब से
कर रहीं निगाहें सजदा जो तुझसे टकराईं थीं
"अंदाज़-ए -मंज़र" से ये ग़ज़ल भींग जाएगी
गुलाबी दुपट्टे से जो मेरा नाम बांध आई थी
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