...

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शुरुआत
चलो, शुरू से शुरू करते हैं!
ना आज से ना कल से
ना बीते हुए पल से
हर वक्त तक पहुंचे जो,
अनसुनी सी कोई गुफ़्तगू करते हैं..
चलो, शुरू से शुरू करते हैं..

जहां लफ़्ज शुरू भी ना हुए
ढूंढते हैं किस्से उस छोर से..
जहां बस 'हम' थे, तुम और मैं
झांकते हैं वक्त के उस ओर से..
आख़िरी शख़्स भी शामिल हो जिसमें,
अनकही सी कोई दास्तां कहते हैं..
चलो, शुरू से शुरू करते हैं..

जब ना इश्क की खु़मारी थी
ना नफ़रत थी ना अय्यारी थी..
जब इल्म ना था दौलत का
ना दुनिया की दुनियादारी थी..
बिन किसी छल-बल दांव-पेंचों की,
अनजानी सी तरतीब में ढलते हैं..
चलो, शुरू से शुरू करते हैं..

कसे नहीं थे बाहरी ओझल धागे
ये मन जहां सिर्फ मचलता था..
जेहन में थे कुछ मासूम सवाल
हर्फ़-हर्फ़ उधेड़ कर देखा नहीं था..
ना कोई किसी को जाने, ना हो अनजान,
अजनबी सी ऐसी राह पे चलते हैं..
चलो, शुरू से शुरू करते हैं...


© आद्या