...

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शाम तेरे नाम
सुनो,
कुछ ख्वाहिशें जगी हैं दिल में मेरे
जो तस्वीर ने उकेरी हैं।
जैसे वो दिख रहे हैं ना,
बैठे चौखट पे, खोए हुए से लम्हे में
ऐसे बैठे हों कभी हम
किसी पुराने महल के पास...
ढलती शाम के साए में
मध्यम हवा के झोकों ने इन झुमकों से रुनझुन गजल के साज छेड़े हैं,
इन तरानों को हाथों तराश लूं जरा..
खुली जुल्फें ये जो कहानियां कह रही हैं
इन्हे मन भर के सवार लूं जरा ।
मुस्कान के लम्हों को दिल में लिख के
तेरी सोहबत में मेरी रूह को सिंगार लूं जरा ।
निहारूं जितना उतानी ही चाहत बढ़ती है
तुम्हें खुदमे छुपा लूं जरा ।
.
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ना जाने कितना वक्त लगेगा ये सच होने में तबतक ख्यालों में ही जी लूं जरा ।
असलियत न बताना मुझे कोई अब,
तेरी पनाह में हूं, खो लूं जरा ।


© TofN

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