...

5 views

"चेतना का चक्रव्यूह "
मैं अर्जुन अभी बना नहीं मुझे कृष्ण तक जाना था ,
चेतना के सातवे शिखर के बाद हीं ईश्वर को पाना था,
पिछली बार छठे: घर में मैं अपने अस्तित्व से हारा था,
मेरे मस्तिष्क के दुर्योधन ने वही पे मुझको मारा था
छठे घर में हीं तोह अभिमन्यु भी अटका था,
जल्दी अंदर थी जाने की इसलिए तोह भटका था
तभी किसी समाज कर्ण ने आकर अभिमन्यु को मारा था
क्या हीं करता वो भी तो अनभिज्ञ अज्ञानी बेचारा था
समझ ना सकता कोई चेतना के 7 चक्र ये बस ज्ञानियों की भाषा थी
इसलिए अर्जुन को बस एक कृष्ण से आशा थी.......... continued
🖋️krishn

© All Rights Reserved