...

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Mazdoor hai par majboori nhi
जिन मजदुर से तू घृणा करता है.
जिनके पास होना भी तुझे पसंद नही.
जिनकी मजबूरी तू नही समझता.
जब वही मजदुर घर बैठ जाये न.
तो तेरी औकात घर होते हुए भी गरीब जैसे होगी.
तब उनका छोटा सा आँगन भी उनके लिए महल रहेगा.
जब वो मजदूर तेरी इंडस्ट्री को इतना प्रॉफिट दिला सकता है.
तो सोच खुद के दम पे क्या कुछ कर लेंगे.
उनकी ईमानदारी को लाचारी मत समझना.
वो खुद रो के अपने बच्चे को छॉव दे सकते है.
तो अपने बल पे कमा के जी भी सकते है.
तुम तो इस बात से डरो जीनेह आज तुम्हारी जरुरत थी.
तूने ऐनवक़्त पे उसका साथ छोरा.
फिर क्यों वो तुम्हरा महल बनायेंगे.
भगवन से न सही कम से कम,
उस गरीब की हाय से तो दर.
क्योकी जिसको तुने मलतब समझा.
वो तो खुदा का बंदा है.
तभी तो तेरी हर जुल्म सहके,
वापस तेरे लिए ही काम करता है.
बस उस दिन के इंतजार मै,
की कब तू उसकी कद्र करेगा,
और कब तू एक अच्छा इंसान बनेगा.