...

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अगर तुम इस कदर मेरे शब्दों से हंसती हो
अगर तुम इस कदर
मेरे शब्दों से हंसती हो
तो मैं मानता हूं कि
तुम मेरी खत को पढ़ाती हो

नहीं देती हो चु शब्द जवाब
चुपचाप रहती हो
कहीं ना कहीं मेरी याद
दिन में दो-चार बार करती हो
अगर तुम इस,,,,,,,

कहीं ,कभी ,किसी के सामने
मेरे नाम बोलने से बचती हो
ओ जनाबे अली
ऐसे ही नहीं मचलती हो
अगर तुम इस,,,,,,,

सच क्या है झूठ किया है भगवान जाने
लेकिन तुम कुछ ना कुछ कहना चाहती हो
फिर भी जानबूझकर
मौन धारण किए रहती हो
अगर तुम इस,,,,,,,

कहीं जिंदा हूं मैं तेरे अंदर
यह तुम कहती हो
ओ बावरी
मस्त चपल निगाहें भरती हो
अगर तुम इस,,,,,,,

केवल और केवल अदाओं से नहीं
और भी कई तरीके से मार जाती हो
ओ मेडल
सुरभि नयनों से क्यों इतना बिजलियां गिरती हो
अगर तुम इस,,,,,,,

संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar