...

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गणतंत्र भी अब राजतंत्र होने लगा हैं
गणतंत्र भी लगता हैं धीरे धीरे राजतंत्र होने लगा हैं
एक ही वंश का पीढ़ी दर पीढ़ी एकाधिकार होने लगा हैं

सोचा था आजादी मिलेगी तो कुछ नया अध्याय होगा
परतन्त्र से भी आजादी मिलेगी , भारत स्वतंत्र जो होने लगा हैं

गणतंत्र क्षीण हो रहा हैं , मतपेटी भी राजा उगलने लगी हैं
जन का सेवक भी दिन प्रतिदिन परम प्रतापी राजा होने लगा हैं

निरकुंशता की हद भी छोटी पड़ने लगी हैं , लाचारी देखो
अपने हक के लिए क्या किसान क्या मजदूर सड़को पर उतरने लगा हैं

तिलक जी ने आजादी को अपना जन्म सिद्ध अधिकार बताया था
आज मतपेटी का जाया सेवक , वंशवाद पर कुर्सी का हर बार अधिकारी होने लगा हैं

संविधान भी बुढ़ापे की दहलीज पे खड़ा हैं शायद , धीरे धीरे बुजुर्ग होकर
महाभारत के कोरवों की सभा में भीष्म के जैसे मजबूर होने लगा हैं

उठो जागो संविधान बचाओ ,गणतंत्र बचाओ ,आज नहीं तो कब
चहूँ और विचारों की आँधी हैं , शायद फिर से कोई तुफान उठने लगा हैं...
© M.S.Suthar