तन्हाई अपना हम साया है इसे दूर भागना मत-
क़ैद कर लिया है ख़ुद को तन्हाई में
क्या लेना है मुझको तेरी ख़ुदाई में
तू अपनी ग़ज़लों में मुझको गाती रह
मैं भी जी लेता हूँ हवा हवाई में
मैं गुम्फित ख़्वाबों में रोज भटकता हूँ
नशा बन चुके ग़म के घूँट गटकता हूँ
अक्सर अपनी परछाईं से डरकर मैं
घबराकर ख़ुद से ही दूर...
क्या लेना है मुझको तेरी ख़ुदाई में
तू अपनी ग़ज़लों में मुझको गाती रह
मैं भी जी लेता हूँ हवा हवाई में
मैं गुम्फित ख़्वाबों में रोज भटकता हूँ
नशा बन चुके ग़म के घूँट गटकता हूँ
अक्सर अपनी परछाईं से डरकर मैं
घबराकर ख़ुद से ही दूर...