...

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"जिंदगी"
कल एक झलक जिंदगी को देखा,
वो राहों पर मेरी गुनगुना रही थी।

फिर ढूंढा उसे इधर उधर,
वो आंख मिचौली कर मुस्कुरा रही थी।

एक अरसे के बाद आया मुझे करार,
वो सहला कर मुझे सुला रही थी।

जिम्मेदारियों तले दबकर जीना
और परिश्रमों को बखूबी बतला रही थी।

मेरे साथ कदम कदम चल मुझे,
समय के असल मायने समझा रही थी।

कौन अपने कौन पराए,
यह लोगो के आवरण से दिखला रही थी।

हम दोनो क्यों खफा है एक दूसरे से,
मैं उसे,और वो मुझे समझा रही थी।

मैंने पूछ लिया:-क्यों इतना दर्द दिया कमबख्त तूने?
वो हंसी और बोली:मैं "जिंदगी" हु पगले,
तुझे जीना सिखा रही थी।
© ~writerRj~✓