...

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शादी शुदा महिलाएं
मैंने देखा है आधी उम्र की
शादी शुदा महिलाओं को
झूठी ,मुस्कुराहट से लदी तस्वीरें लगाती
अपने ही सच को छुपाते हुई.....

ससुराल औऱ मायके की
उम्मीदों का बोझ ढोती हुई
रिश्तों के जाल में उलझी
जिम्मेदारियों से बंधी हुई.......

थोपे हुए या गलत लिए फैसलों की
सजा से बाहर निकलकर
खुल के जीना चाहती हैं
कुछ पल अपने लिए
समेट लेना चाहती हैं

अपने ख्वाहिशों के खालीपन को
भरना चाहती हैं
किसी अपने से लिपटकर
जी भर के रोना चाहती हैं

चाहती हैं किसी रिश्ते से बंधे बगैर
कोई हो,
दोस्त से बढ़कर और प्रेमी से कुछ कम,
उदासियों का हमसफर हो ,
दर्द का साझेदार तकलीफ में हौसला बने और,
तन्हाई में दिल का सुंकूँ और करार।

फिर,,,
मर्यादा की बेड़ियां और
लाँछन का डर रोक देता
बढ़ते हुए कदमों को
पिंजरे में कैद पंछी की तरह
खामोशी का शोर छटपटाता रहता है
निरंतर अनवरत बिना रुके।
देखी हैं ऐसी ही
शादी शुदा महिलाएं

© ठाकुर बाई सा