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फुटपाथ
ये फुटपाथ सदियों से सर्दी गर्मी बरसात सबकुछ चुपचाप सह रहा है
ये रोज देखता है हजारों लोगों को
सुनता है उनके दुख दर्द को,
उनकी हंसी को, झूठे -सच्चे वायदों को,
देखता है ऐश्वर्य को ,दुख को, गरीबी को
और शायद महसूस भी करता हो
मगर सब कुछ अपने भीतर समेटे रखता है किसी से कुछ नहीं कहता
चाहे कितनी ही दरारे पड़ जाए ,
टूट-फूट हो जाए
सब कुछ अपने ही भीतर समेटे रखता है। कितनी आसानी से हम किसी को
फुटपाथिया आदमी की संज्ञा दे देते है
कभी देखा है फुटपाथ पर बैठे लोगों
सर्दी ,गर्मी, बरसात झेेलते ।
गर्मी में जब सड़कें जलकर पिघलने लगती है
बारिश के दिनों में जब जीवनदायी जल
इतना नीचे गिर जाता है कि
प्रलय मचाने लगता है
सर्दियों में जब सब कुछ जम जाता है
तब भी ये जमे रहते हैं फुटपाथ पर ।
सो अगली बार किसी को
फुटपाथिया कहने से पहले
शब्द की गुरुता को समझना
बिल्कुल भी आसान नहीं है
फुटपाथ और फुटपाथिया होना
"ग़ाफ़िल "