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दर्द_का_थोड़ा_और_इज़ाफ़ा_बढ़ने_लगा
दर्द में दर्द का थोड़ा और इज़ाफ़ा बढ़ने लगा
चारों तरफ ख़ामोशियों का तमाशा बढ़ने लगा
बहते हुए अश्कों के साथ कई राज़ भी दफ़न है
यूं ही नहीं तोहमतों का ये भरोसा बढ़ने लगा

रातों की बातों में कुछ टूटते हुए हौसलें दफ़न है
तमाम कमजोरियों के साथ मैं तन्हा बढ़ने लगा
दर्द में दर्द के इल्ज़ामों का हिसाब किताब दफ़न है
इसकी उसकी बातों में प्रश्नों का सलीक़ा बढ़ने लगा

इम्तिहानों की ठोकरों में ख्वाबों - ख़्वाहिशें दफ़न है
ज़ख्मों के किस्से कहानियों में भी इज़ाफ़ा बढ़ने लगा
तार-तार हुए हौसलों का ज़िक्र आज लबों पे दफ़न है
निगाहों में अश्कों के प्रश्न लेकर अकेला बढ़ने लगा

गुजरते हुए वक़्त के साथ आज का वक़्त भी दफ़न है
झूठी - मूठी फ़नकारी से तो सारा-ज़माना बढ़ने लगा
यूं ही नहीं तसल्लियों का फ़िक्र ज़िक्र बहानों में दफ़न है
प्रश्न चिन्हों से सजा कमजोरियों का लिफ़ाफ़ा बढ़ने लगा

दुनिया जहां की तीखी बातें मयखानों में दफ़न है
दुख दर्दों से बुना हुआ आज इक परिंदा बढ़ने लगा
ना उम्मीदों का लेखा-जोखा अश्कों में दफ़न है
तमाम ज़ख़्मों से रफ़ू होकर इक चेहरा बढ़ने लगा

डगमगाते हुए विश्वास की हौसलें सवालों में दफ़न है
मेरे ख्वाबों के सौदा करके कोई अपना बढ़ने लगा
नाकाबिल का परिणाम थमाकर यहां सब दफ़न है
आज दर्द में दर्द का थोड़ा और इज़ाफ़ा बढ़ने लगा

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes
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