...

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ज़िंदगी के पन्नों से
किताबों के दौर से बाहर आ गए हैं जनाब,
अब ज़िंदगी को पढ़ने लगे हैं।
हर पन्ना एक नया किस्सा सुनाता है,
हर मोड़ पर सबक सिखने लगे हैं।

सपनों की जुबां अब चुप सी हो गई,
हकीकतों के रंग दिखाने लगे हैं।
अब शब्द नहीं, अनुभव बोलते हैं,
खामोशियों में भी इशारे होने लगे हैं।

रास्ते जो किताबों में कभी देखे थे,
अब कदमों से नापने लगे हैं।
तलाश नहीं अब जवाबों की,
हम खुद सवाल उठाने लगे हैं।

खुदा से शिकवे करने की आदत छूट गई,
अब खुद को खुदा बनाने लगे हैं।
दास्तां हमारी अब कोई लिखेगा नहीं,
हम अपने क़िस्से खुद छिपाने लगे हैं।

जो कल तक डरते थे अंधेरों से,
अब उन रातों को गले लगाने लगे हैं।
दुनिया की भीड़ में भटकने के बजाय,
हम खुद से मिलकर मुस्कुराने लगे हैं।

© rajib1603