...

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दिल्ली में हूं
श्रम से चूर-चूर हो कर ,
दूर होकर अपनी प्रिया से ,
गिलता हूं चार दाने ,
जब पी-पीकर पानी !
तो याद आती घर की
मिट्टी से सनी पटिया !
सो चैन की नींद! और
यहां की जिंदगानी !!

काम से निकला हूं :
कुछ कम काम करके ;
सोच कर कि आगे और
काम अभी बाकी है !
चलते-चलते पथ पर ,
दिल्ली के उस रथ पर ,
धक्का मुक्की खाया हूं ;
मन थोड़ा धीमा है ,
जा रे ! बीमारियों का बीमा है ।
लेकिन मुझे अभी गढ़नी है
व्यस्तता की कहानी ।।

बस , भूला काम !
भूल गया सारा फोन नंबर
और दोस्तों के नाम !
वाह , याद रहा तो बस ,
लाल किला , जामा और दिल्ली पुरानी ।।

एक था साथ-साथ ,
पर हुई कभी न बात ।
अंतर नजर आता है :
मुझे दिल्ली का दिन ,
और...