...

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शिक्षकों की सीख

ये मत सोच मैं अकेला हूँ कुछ भी कर सकता नहीं ।
सूरज ने कब कहा मैं तन्हा हूँ प्रकाश दे सकता नहीं।

समय तलवार की ऐसी धार है,
जिस पर नंगे पाँव चलना पड़ता है।
सम्भल कर चले तो तालियाँ , असावधानी में रोना पड़ता है।

बीत गई सो बात गई, वह समय तो, वापिस न आया है, न आएगा।
अब तुम लक्ष्य पर रखना ध्यान,
अब बिगड़ा तो सम्भल न पाएगा।

यदि इस महत्वपूर्ण सीख को,
तुम जीवन में उतार पाओगे।
तो ये सत्य है जीवन होगा खुशहाल,
और तुम पार उतर जाओगे।

यदि अब भी पूरी लगन से तुम जुट जाओगे चाँद को ज़मीं पर लाने को
तो आसमान तक खुद झुक जायेगा
तुम्हे लक्ष्य तक पहुँचाने को।

अब अपने आप को भूल कर सब को उच्च स्थान तुम दिलवा देना।
अपने लिए बहुत जी लिए तुम
माँ बाप का सिर गर्व से उठा देना।

यह तो हमारा फ़र्ज़ था,
तुम्हारी नादानियाँ माफ़ कर देना।
पर अब न समझेगा इसे कोई नादानी, यह मन को समझा देना।

अब पूरी तन्मयता से लग जाना
अपनी मंज़िल पाने को ।
यदि अब भी सीरियस न हुए तो,
कुछ न बचेगा हाथ आने को।

वैष्णो खत्री वेदिका
से. नि. शिक्षिका
केंद्रीय विद्यालय
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