...

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क़हर ढा रही हो।
तस्व्वुर में आ रही हो,
मेरे जी को बहला रही हो,
बदला बदला सा है मिज़ाज मेरा,
लगता है पसंद आ रही हो।

भाव बढ़ गए हैं,
नख़रे दिखा रही हो,
क्यूं लगता है मुझे छोड़कर
कहीं और जा रही हो ?

इश्क़ का मौसम है,
अभी इश्क़ कर लो,
क्यूं फालतू के झूठे
नखरे दिखा रही हो।

आरज़ू है तुमको
आंखों से देखने की,
तुम हो कि ख़्यालों
में आकर सता रही हो।।

दिलदार हो कि दुश्मन,
ज़ालिम या सितमगर,
जब देखती हो लगता है ऐसा,मख़मूर
निगाहों से बिजली गिरा रही हो।

क़हर ढा रही हो,क़हर ढा रही हो, क़हर ढा रही हो।।
© khak_@mbalvi