तुझसी रचना
काश! एक रचना तुझसी हुबहू हो जाये
जिसे पढ़कर तूमसे हम रुबरु हो जाये
तेरे ओंठो से जाम छलकता हैं स्याही बनकर
मेरे कविता में आ उतरता हैं हमराही बनकर
अक्षर अक्षर कर्जदार है तेरे लबों का
नैनों में घुली मदीरा में बिती शबो का
तेरी तारीफ में शब्द लटके हैं झुमके से
अंतरा करवट...
जिसे पढ़कर तूमसे हम रुबरु हो जाये
तेरे ओंठो से जाम छलकता हैं स्याही बनकर
मेरे कविता में आ उतरता हैं हमराही बनकर
अक्षर अक्षर कर्जदार है तेरे लबों का
नैनों में घुली मदीरा में बिती शबो का
तेरी तारीफ में शब्द लटके हैं झुमके से
अंतरा करवट...