...

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“हर हाथ का, मरहम लगाना, जरूरी तो नहीं”
पीसा क्यूं ??
ये बदन मेरा, दो सिलों(चक्की) में आके,
महफूज हालत पे, नजर लगाना, यूं ही तो नहीं,,

कुछ हाथ भी उठते हैं, जख्मों को कुरेदने के लिए,
हर हाथ का मरहम लगाना, जरूरी तो नहीं,,

पड़ोस में ही बैठे हैं, कई खोज-ख़बरी लोग,
नहीं तो मौत का, दहलीज तक आना, यूं ही तो नहीं,,

किसी ने संभाली है बाएं, हाथ छुड़ाकर किसी का,
फिर आशिक का, खून खोल जाना, यूं ही तो नहीं,,

उस बे-महर का अचानक सुधरना, यूं ही तो नहीं,
बिगड़ते हालात पर, हमारा बिगड़ना यूं ही तो नहीं,,

मुझ सूखी मिट्टी पे, अम्ल (तेजाब) लगाना, अच्छा नहीं तेरा,
मेरे अरमानों का, मेरे साथ जलना यूं ही तो नहीं,,

बे-खबर है, उसके जुल्म से, शायद खुदा भी,
कपिल को, मुर्दों में उसका गिनना, यूं ही तो नहीं....
© #Kapilsaini