...

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हाँ!...
मेरा दिल भी टूटा था
तभी तो अल्फ़ाज़ मिलने शुरू हो गये
गूंगी ही थी शायद पर समय के साथ बोलना सीख गयी
बहुत कोशिश की अपने गमो को मुस्कान से ढकने की ...और कामयाब हुई ऐसी कि मेरा दर्द किसी को दिखा भी नही
सब खुश थे अपनी ज़िंदगी मे मगर हमने शायद कुछ पलों में ही अपनी ज़िंदगी जी ली थी... कि गुज़रते समय का असर हम पर पड़ा ही नही
पीछे छूट गया यूही सारा बचपना...पता भी न चला कि उम्र से पहले ही समझदार कब बन गयी
बस बोलते बोलते खुद को इतना सिखाया कि शायद राहत हो अब ...और...