...

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हाँ!...
मेरा दिल भी टूटा था
तभी तो अल्फ़ाज़ मिलने शुरू हो गये
गूंगी ही थी शायद पर समय के साथ बोलना सीख गयी
बहुत कोशिश की अपने गमो को मुस्कान से ढकने की ...और कामयाब हुई ऐसी कि मेरा दर्द किसी को दिखा भी नही
सब खुश थे अपनी ज़िंदगी मे मगर हमने शायद कुछ पलों में ही अपनी ज़िंदगी जी ली थी... कि गुज़रते समय का असर हम पर पड़ा ही नही
पीछे छूट गया यूही सारा बचपना...पता भी न चला कि उम्र से पहले ही समझदार कब बन गयी
बस बोलते बोलते खुद को इतना सिखाया कि शायद राहत हो अब ...और मेरे टूटे दिल की कहानी गुमनाम ही रहे कहीं
क्यूँ बदनाम करूँ मैं किसी की तारीफ कर के
अब सीख लिया है मैने तुम्हारे जैसो को ज़लील करना...बिना कुछ कहकर भी
कोस लूं खुद को की तेरी शुक्रगुज़ार रहूँ...
भूल जाऊँ तुझको या अबभी तेरी फरियाद कर बगावत करूँ खुद से ही
सच कहते है लोग कि दिल टूटने पर लोग बड़े खूब शायर बनते है...क्योंकि कलम तब दिमाग की बोली नही दिल के अल्फ़ाज़ लिखती है
पर अब मिलना नही तुम मुझे कब भी कहीं...
यूँ जो तुझे करीब से जानकर भी हार गए हम
कि अब किसी पर भी भरोसा होता नही
हाँ...मेरा दिल भी टूटा था
तभी तो अल्फ़ाज़ मिलने शुरू हो गये
और खुशनसीबी थी कि हम सम्भल गए
पर अब हिम्मत नही फिरसे सम्भलने की
कांच का घर बनाकर खुद ही उसे तोड़ने की
क्योंकिं मेरा दिल भी टूटा था
मेरा दिल भी टूटा था