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कलम,स्याही और मैं
अलसाई कलम
सुस्ताई सी स्याही,
मेरी सुनती ना
लिखें बतिया मनचाही।
सपनों का असबाब
रखा नैना अटारी,
उसमें छिपी मिली
पुरानी बात की कटारी।
काट छाँट हमने
एक दुनिया बसा ली,
चँदा की चाँदनी
हँसी में समा ली।
किसीको मिला साजन
कोई कुछ न समझा,
मैंने लिखा कुछ
मेरा मन तो सुलझा।
लिखीँ लिखीँ धूप
अलसाई कलम,
खिलीँ खिलीँ छाँव
सुस्ताई सी स्याही।
©jignaa___
सुस्ताई सी स्याही,
मेरी सुनती ना
लिखें बतिया मनचाही।
सपनों का असबाब
रखा नैना अटारी,
उसमें छिपी मिली
पुरानी बात की कटारी।
काट छाँट हमने
एक दुनिया बसा ली,
चँदा की चाँदनी
हँसी में समा ली।
किसीको मिला साजन
कोई कुछ न समझा,
मैंने लिखा कुछ
मेरा मन तो सुलझा।
लिखीँ लिखीँ धूप
अलसाई कलम,
खिलीँ खिलीँ छाँव
सुस्ताई सी स्याही।
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