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श्याम सुदामा - १ : मिलने चला हूं
बालसखा मैं कृष्णा कन्हैया का, बचपन उसके संग खेला हूँ,
दीनों का दीन मैं दीन सुदामा, द्वारिकाधीश को मिलने चला हूँ।

न धोती से पूरा तन ढकता है, न रोटी से पूरा घर चलता है,
छोटी सी नगरी की छोटी सी कुटिया में छोटा सा मैं एक ब्राह्मण रहता हूँ,
दीनों का दीन मैं दीन सुदामा, द्वारिकाधीश को मिलने चला हूँ।

छोटे से चावल के दाने का भी, टुकड़ा कर कृष्ण को सौंपने वाला,
लिए दाने तंदुल के मुट्ठी में , मोहन मुरलीधर से मिलने चला हूं।
दीनों का दीन मैं दीन सुदामा, द्वारिकाधीश को मिलने चला हूँ।

काल कष्ट आनंद करनी के कुचेला, कई वर्षों तक कर्म से काटने वाला,
सुन भले बोल भार्या के भगत मैं, भाग्यविधाता से भेंट चला हूँ
दीनों का दीन मैं दीन सुदामा, द्वारिकाधीश को मिलने चला हूँ।


© Utkarsh Ahuja