...

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युवा देश के
विकसित होते युवा देश के तकनीकों में पल करके
बिता रहें हैं जीवन देखो अवसादों में जल करके
नयी गुत्थियां सुलझाने को आएं हैं कुछ उम्दा लोग
फंसे हुए ख़ुद के जालों में चक्रव्यूह को हल करके
मंज़िल का कुछ पता नहीं कठपुतली जैसे चलते हैं
क़िस्मत का संजोग बताकर खाली मुठ्ठी मलते हैं
तर्क विमर्श से कोसों हटकर मन के नग्मे गाते हैं
मिलते अवसर गंवा रहे हैं आज नहीं तो कल करके
अंहकार के बल में डूबे इतराते तो ऐसे हैं
सारे जग के स्वामी हैं ये कालनेमि के जैसे हैं
ख़ुद की छवि में फूले जाते बिन रस्सी के झूले जाते
दिखा रहे करतब लोगों को जाने कैसे-कैसे हैं
रील बनाते रीलों पर ये राह बनाते कीलों पर
बिन आधार, बिना परखे ये महल बनाते टीलों पर
बुनियादों की ख़बर नहीं हिल जाती नन्हें झोंको से
बह जाते हैं सपने ऐसे जैसे नदियां झीलों पर
हश्र न जाने क्या होगा आने वाली उन पीढ़ी का
नये युगों को रचने वाले धुआं उड़ाते बीड़ी का
अंधकार में डूबा रस्ता झिलमिल सा अब लगता है
पायदान सब जंग लगे हैं चढ़ने वाली सीढ़ी का
वक्त अभी भी कुछ बांकी है चाहोगे क्या तुम लड़ना?
जिंदा रहते मर मिट जाना मर करके जिंदा रहना
झूठ अमीरी दबी फकीरी क्या कांसा तुम फेंकोगे?
खुद का भाग्य बदलने वाला क्या पांसा तुम फेंकोगे?
© Er. Shiv Prakash Tiwari