...

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इश्क़ और खाना ख़राब
सवाल तो हैं बहुत पर जवाब है कि नहीं
यूं ख़्याल तो हैं बहुत कोई ख़्वाब है कि नहीं

जवां दिलों में मोहब्बत अगर सुलगने लगे
सरूर तो है बहुत पर शराब है कि नहीं

तलाश भीड़ में तन्हाइयों की हो जो तुम्हें
सुना है शोर बहुत पेच-ओ-ताब है कि नहीं

तलाश में किसी दिलबर की दर-ब-दर हैं फिरे
यूं हुस्न तो है बहुत पर शबाब है कि नहीं

ये ज़िन्दगी कभी ख़ुद से ख़फा जो होने लगे
हकीकतें तो बहुत पर सराब है कि नहीं

हों चाहतें अगर बर्बादियों की हद से परे
बहुत है इश्क़ तो खाना ख़राब है कि नहीं

बहर : १२१२ ११२२ १२१२ ११२
© अमरीश अग्रवाल "मासूम"