...

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हथेली पर रख आईना
कुछ देर मैं चुप रहा फिर कहा
यार तुम इतने इमोशनल क्यों हो जाते हो
समस्या लिए हर वक्त
चले आते क्यों हो
इस सड़क को भुल जाओ
इस घर को भुल जाओ
मैं नहीं कर सकता तुम्हारी समस्या का समाधान
आग लगाओ इन्हें और निकल जाओ
देखकर आंसू उसके दिल पसीजता है
ना चाहते हुए भी दिल चाहता है
आंसू उसके सूख जाए
उस सब्ज परी से जिसकी दीवानगी में
यह पागल है इसे मिल जाए
पर रूतबे की बात थी
आग तो आग और बस आग थी
आखिर जीना था जिंदगी को
मर जाने का तो न कोई अर्थ था
समझा कर मैंने कहा
रसूख में पलनेवाली राजकुमारी है
मिल भी जाए तुम निभा न पाओगे उसे
जिंदगी उसकी नर्क कर जाओगे
अपनी मुहब्बत को ये अंजाम न दो
खुदगर्जी का नाम न दो
ना कोई तनख्वाह न रोज़ी रोटी है
उसकी एक पसंद पे लुट जाएगी
बाप दादा की जो खेती है
ये हवाएं नहीं तुम्हारे काम की
आओ तुम्हें फिर भी इक राह सुझा दूं
दोस्त हो सलाह मानो
हथेली में रख आइना
उस चांद को इस तरह ही सही पा लो ....।





© सुशील पवार