...

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प्रेम की परिभाषा
रेत की तरह तुम भी
नहीं समा सकते मेरी मुट्ठी में
मेरे हाथों में तुम्हारे नाम की लकीर ही
नहीं बनाई भगवान ने।
इसलिए मैंने चुनी स्वतन्त्रता तुम्हारी
और चुनी अपनी फितरत पानी की
ताकि तुम घुल जाओ मुझमें,
मैं समा जाऊं तुझमें इश्क बनकर।
ना तुम तुम रहो,ना मैं मैं रहूं
मिल जाएं दोनों और
बनाएं एक नई प्रतिमा,
रचें एक नई लिपि और लिखें
एक नई परिभाषा प्रेम की।