मेरे मनमीत !
ओ मेरे मनमीत !
एक रोज कहा था मैने, लिखूंगी मैं तुम्हारे लिए कभी कोई गीत
आजकल मैं लिख रही, बस तेरे लिए ही मेरी हर गीत
ओ मेरे मनमीत !
अब न तुम साथ हो, ना ही कोई संवाद है
फिर मेरे गीतों का क्या सरोकार है ,,?
तेरी दोस्ती के अहसास ने ही, दिए मुझे अल्फाज है
मेरे गीतों के हर एक शब्द में...
एक रोज कहा था मैने, लिखूंगी मैं तुम्हारे लिए कभी कोई गीत
आजकल मैं लिख रही, बस तेरे लिए ही मेरी हर गीत
ओ मेरे मनमीत !
अब न तुम साथ हो, ना ही कोई संवाद है
फिर मेरे गीतों का क्या सरोकार है ,,?
तेरी दोस्ती के अहसास ने ही, दिए मुझे अल्फाज है
मेरे गीतों के हर एक शब्द में...