...

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मेरे मनमीत !
ओ मेरे मनमीत !
एक रोज कहा था मैने, लिखूंगी मैं तुम्हारे लिए कभी कोई गीत
आजकल मैं लिख रही, बस तेरे लिए ही मेरी हर गीत
ओ मेरे मनमीत !

अब न तुम साथ हो, ना ही कोई संवाद है
फिर मेरे गीतों का क्या सरोकार है ,,?
तेरी दोस्ती के अहसास ने ही, दिए मुझे अल्फाज है
मेरे गीतों के हर एक शब्द में तेरी यादों का ही साज है।
ओ मेरे मनमीत !

नसीब तो देखो मेरा, कितना दर्द दे गई
हमारी दोस्ती को ना जाने क्यूं अधूरा कर गई
मेरे गीतों में बस तेरी यादों के साज भर गई
ओ मेरे मनमीत !

मित्रता हमारी है प्रेम का पवित्र संस्करण
तुम सदृश सखा सुदामा, तो मैं बन जाऊं कृष्ण
संदेह के लिए कोई जगह ना रखना
मित्रता तो केवल मित्रता है,
पवित्र भावनाओं का बंधन है
समझना इसे तुम मनमीत !
तुम्हारे लिए आज मेरी यही छोटी सी गीत,,।
© 💥Annapurna Suryavanshi💥