...

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मुझे तो कांटे चुभे ज़ब तुझे छूना चाहा..
कौन कहता है कि मेरी वफा हो तुम,
यकीनन मेरे कत्ल की जफ़ा हो तुम..

और भी सिगरेट जलाती हो या फिर,
सिर्फ मेरे ही कमरे की धुआ हो तुम..

तुम गई हो लौट आओगी मगर,
काश रूठी हो और बस खफा हो तुम..

कैद जिसको गुजार लूं मैं हंसते-हंसते,
मोहब्बत ए जुर्म की एक ऐसी सजा हो तुम..

पर और कितने जख्म भर रखे हैं तुमने,
किस-किस के दर्द की दवा हो तुम..

मुझे तो कांटे चुभे जब तुझे छूना चाहा,
खंजर हो मगर गुलाब की तरह हो तुम..

पर हमें मंजूर है, मर जाएंगे पीकर तुम्हें,
बदन है जहर सा, शबाब हो, शराब हो तुम..

- उत्कर्ष