...

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उड़ान हौंसलों की
कभी तो आजाद हो....
तू दुनिया दारी के,
इस पिंजरे से "
पता नही क्यों कैद है,
रिश्ते नातो की इन जंजीरो से,,,,!!

आखिर क्यों पड़ा है....
इस तरह थक हार के,
तू जमीन पर "
चल भर उड़ान हौंसलों की,
क्यों,,,,लड़ता है तू तक़दीर से,,,,!!

हार गया तो क्या हुआ...
ना जाने क्यों हारने से,
तू घबराता है "
भरते है जो भी,
उड़ान हौंसलों की "
रुकते नही वो गिर जाने से,,,,!!

कभी तो मुस्कुरा कर....
फैला अपने पंखो को,
और उड़ जा दूर कही उन "
खुले आसमानों मे,,,,,!!

कभी तो भर उड़ान हौंसलों की....
कुछ ना होगा अब तेरे "
इस तरह पछताने से,
मत गवां अपने समय को "
किस्मत पर दोष लगाने में,,,,,!!

कुछ भी नही होगा तेरे......
आँसू बहाने से,
मंजिल तक पहुँचने का रास्ता "
नज़र आता है,
सिर्फ और सिर्फ मुस्कुराने से,,,,!!

© Himanshu Singh