गुनाह हैं -2
पहले दौर की बात और थी,किसी के काम आना भी अब गुनाह हैं,
सब ख़ुद में हैं इतने मसरूफ़,बिना बताए किसी के घर जाना भी अब गुनाह हैं,
दुनियां में अक्लमंदी इतनी हैं,किसी को समझदारी सिखाना भी अब गुनाह हैं,
बेवफ़ाई का चल पड़ा हैं दौर आजकल, वफ़ा की उम्मीद लगाना भी गुनाह हैं,
आग से भी तेज़ बात हवा में उड़ती हैं किसी को राज़ बताना
भी अब गुनाह हैं,
झूठ इस क़दर फ़ितरत में शामिल हो गया सच कहना,
लिखना भी अब गुनाह हैं,
मुकदमा,कचहरी भी जो महफ़िल से हो गए 'ताज'तो खुदा से डरना भी अब गुनाह हैं,
© taj
सब ख़ुद में हैं इतने मसरूफ़,बिना बताए किसी के घर जाना भी अब गुनाह हैं,
दुनियां में अक्लमंदी इतनी हैं,किसी को समझदारी सिखाना भी अब गुनाह हैं,
बेवफ़ाई का चल पड़ा हैं दौर आजकल, वफ़ा की उम्मीद लगाना भी गुनाह हैं,
आग से भी तेज़ बात हवा में उड़ती हैं किसी को राज़ बताना
भी अब गुनाह हैं,
झूठ इस क़दर फ़ितरत में शामिल हो गया सच कहना,
लिखना भी अब गुनाह हैं,
मुकदमा,कचहरी भी जो महफ़िल से हो गए 'ताज'तो खुदा से डरना भी अब गुनाह हैं,
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