...

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सचेत हो जाएँ..
कांपते हाथ
लड़खड़ाते कदम
बूढ़ी आँख़ें
और चेहरे की इन
झुर्रियों की कसम

मात पिता को
रुलाकर
तरसाकर
तड़पाकर
क्या निकलता नहीं
ऐसी संतानों का दम??

घुटते हैं
पिसते हैं
घसीटते हैं
ख़ुद को,
लाचारी में
आहें भरते हैं ये..
समझदारी औलादों की
कहाँ हो रही है गुम??

सचेत हो जाएं
संतानों पर लुटाने से पहले
अपनी संपति
अपने लिए भी बचाएं,
इससे पहले कि
बुढ़ापा कर जाए
आँखें नम...

ढल जायेंगे ये दिन
ढल जायेंगी ये रातें
ढल जाएगी ये उम्र
बदल ही जाएगा
आज का हर वो मौसम
उँगली पकड़ चलना सिखाया जिसको
बदल जाएगा
वो भी किसी रोज़ एक दिन...




© bindu