...

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"फेरे"
भाव अभी की बात है यह,
समझ से इसका साथ कहां है।
क्या कोई अभिमान करें,
मान की गहरी बात यहां है।

तोल मोल के देखा है,
तब मैं ज्ञान ये जानी हूं।
गहरी इसकी सीमा है,
यह जान मैं मानी हूं।

कहते हैं जो सुख दुख में,
बस यूं ही साथ निभाता है।
एक-एक 'फेरा' करके,
सब में वह बंध जाता है।

मैं तुम में संपूर्ण रहूं,
तुम मुझ में खो जाओ।
संग 'फेरे' की प्रीत सजन,
तुम, मेरे साथ निभा जाओ।

बात यह एसे साथी की,
बिन मिट्टी ना चाकी की,
मुख की 'वाणी' वचन समान,
हर जन्म में साथ निभाती सी।
© प्रज्ञा वाणी