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बूढ़े वृक्ष के जीवन के अंतिम दिनों की बातें...!
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संभलकर नज़रों से जिसे देखा दिनों तक!
वह कोई शख्सियत नहीं, एक वृक्ष ही था।

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अंतिम दिनों में अपनी हालात से परेशान!
जवान मत समझना, वह एक वृद्ध ही था।

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जर्जर जिस्म लिए गिने चुने पत्ते लटकाए!
लग रहा था, उसके पूरे बाल झड़ चुके थे।

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सूख चुके थे टहनियाँ भी कमजोरी के चलते!
पेट और दोनों आँखें बड़े अन्दर गड़ चुके थे।

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गिरने की हालात में भी स्वयम् को संभाले खड़ा था।
जीवन के अंतिम दिनों को यादगार बनाने अड़ा था।

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अपने इर्दगिर्द के लोगों का इसने ध्यान बहुत रखा!
फल, फूल, लकड़ियाँ दे अपना ईमान बहुत रखा।

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अंतिम दिनों में भी बीमार होकर सेवा को तैयार था।
बेहद प्यारा वृद्ध वृक्ष, इसे तो परोपकार से प्यार था।

-✍️ऋषि🔱

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